मै कब रूठी थी बच्चपन से बच्चपन ही मुझसे रूठ गयी
हर हँसी भी एक राज़ है जो ज़िन्दगी जीने का साज़ है
अब यही हमराज़ है और आगे बढ़ने का ताज़ है
मै कब रूठी थी बच्चपन से बच्चपन ही मुझसे रूठ गयी
काश आज भी एक छोटी बच्ची होती हर हँसी मेरी ही होती
मै कब रूठी थी बच्चपन से बच्चपन ही मुझसे रूठ गयी
खबर न थी क़ुछ सुबह की न शाम का ठिकाना होता था
दादी की कहानी होती थी परियों का फ़साना होता था
रोने की वजह न होती थी हँसने का बहाना होता था
श्याद् बड़ी हो चुकी ,इस ज़िन्दगी के उतार चढाव मे
न तो यह दर्द का एहसास रहता न तो यह राज़ बनता
किसको पता कितना दर्द है बस अब यही मेरा हमदर्द है
मै कब रूठी थी बच्चपन से बच्चपन ही मुझसे रूठ गयी
मै कब रूठी थी बच्चपन से बच्चपन ही मुझसे रूठ गयी
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